लक्ष्मी पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक अनुष्ठान है, जो देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। देवी लक्ष्मी को धन, ऐश्वर्य, वैभव और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। यह पूजा विशेष रूप से दीपावली, कोजागरी पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, और शुक्रवार के दिन की जाती है, क्योंकि इन दिनों को देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के साथ-साथ नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता को दूर करना होता है। मान्यता है कि जहां मां लक्ष्मी का वास होता है, वहां धन, ऐश्वर्य, सुख-शांति और वैभव स्वतः ही आ जाते हैं, जबकि उनके बिना जीवन में दरिद्रता, दुख और असफलताएँ बनी रहती हैं। इसीलिए हर व्यक्ति अपने घर, व्यापार और जीवन में देवी लक्ष्मी की कृपा बनाए रखने के लिए विधि-विधान से उनकी पूजा करता है। लक्ष्मी पूजा की प्रक्रिया अत्यंत पवित्र और विस्तृत होती है, जिसमें पूजा स्थान की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है, क्योंकि मां लक्ष्मी को स्वच्छता अत्यंत प्रिय होती है। इस पूजा में गंगा जल, चंदन, कुमकुम, अक्षत (चावल), दीपक, फूल, धूप, नैवेद्य (मिठाई) और नारियल का उपयोग किया जाता है। देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र को एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। दीप जलाकर, धूप-दीप से आरती की जाती है और मंत्रों का जाप किया जाता है। विशेष रूप से 'ॐ महालक्ष्म्यै नमः' और 'श्री लक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्र' का पाठ करने से देवी लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था, और तभी से उन्हें सौभाग्य, धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। यही कारण है कि दीपावली की रात, जिसे अमावस्या की रात भी कहा जाता है, विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इस दिन मान्यता है कि देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो भी भक्त श्रद्धा और भक्ति भाव से उनकी पूजा करता है, उसे अपार धन-सम्पत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर घरों और प्रतिष्ठानों को दीपों, रंगोली, पुष्पों और तोरणों से सजाया जाता है ताकि देवी लक्ष्मी को आकर्षित किया जा सके और वे स्थायी रूप से वहां वास करें।
लक्ष्मी पूजा
